मेरी बालकनी में
लटका हुआ बादल
आधा सफ़ेद आधा काजल
दिल का भोलाभाला
खेल रहा था
छुपनछुपाई
मेरे बरामदे में रखी
थी एक चारपाई
उसके पीछे जा छिपा
यूँ तो चारपाई के
रेशों के बीच वो दिख रहा था
पर न जाने वो पागल
क्यूँ छिप रहा था
मासूम सा था वो , नन्हे
नन्हे पाँव थे
उसकी गोद में बसे
बारिशों के गाँव थे
नींद में था वो, आधी
खुली आँखे थी उसकी
छोटा सा बच्चा था वो,
मखमली सी सांसे थी उसकी
अभी अभी उसने कुछ
बोला था
पास में लगे फूलों
में शहद घोला था
थी एक पंछी उसकी दोस्त
खोजते उसे वो आ बैठी
बगल के नीम में अपना
घर बना बैठी
फिर पंछी ने उसे
धप्पा बोला
पकड़ लिया तुझको ये
कहते ही पंछी के
बादल ने अपनी आँखों
को खोला
रात भर दोनों
बतियाते रहे
चाँद को भी नींद से
जगाते रहे
मिल कर संग जुगनुओं
के
बरामदे में मेरे धमाचौकड़ी
मचाते रहे
सुबह होने लगी थी,
सूरज निकलने लगा था
बादल अब रोने लगा था
,बाट अपने माँ कि वो जोहने लगा था
मैंने उसे उठाया ,ले
जा कर उसकी माँ से मिलवाया
अगले ही पल मैंने
चारपाई को बिछाया
और खुद को उसपे सोता
हुआ पाया